कौन हे तू और कहा हे तू,
लोग तो कहते हे की सारा जहां हे तू,
कण कण  में हे तू , हर ज़रे  में हे तू,
फिर भी ये सवाल पूंछता हु,
की कौन हे तू और कहा हे तू,

शायद  में तुजे  जानता हु,
शायद में पहचान ता भी हु,
फिर भी बहोत सी बातें हे मन में,
जो में समज नहीं पाता हु,
जो तू हर जगह हे तो
क्यों तुजे ढूंढ नहीं पाता हु.

बचपन से अपनों ने समजाया,
फिर भी में वहां सर जुका न पाया,
जहा ज़ुकती थी सारी दुनिया,
पथ्थर की उस मूरत में भी
में तुजे ढूंढ नहीं पाया,

कोई बुलाये भगवान तुजे, तो कोई अल्लाह
कोई कहे जीसस तुजे तो कोई खुदा,
वैसे तो हजारो नाम दे रखे हे हम इंसानो ने तुजे,
भले ही एक ही हो तू, पर तेरे ही नाम पे
आज हो गए हे इंसान से इंसान जुदा,

क्या तू सच में हे, या तेरा कोई वजूद ही नहीं हे,
जानता हु की ये गुस्ताखी बहोत बड़ी हे,
जो तेरे वजूद पे ही सवाल उठाने की जुरत की हे,

कड़वा हे  पर  सच तो यही हे की,
तेरे होने न होने से यहाँ किसीको फर्क नहीं पड़ता,
अगर जो पड़ता तो तेरे ही नाम पे आज,
इंसान से इंसान नहीं लड़ता,

तू गर हे भी तो वो नहीं जो लोग समझते हे ,
तू हे भी तो वहां नहीं जहा लोग सर जुकाते हे,
क्यों तूने हमको इस जग में भेजा हे,
बस इतनी सी बात लोग समज नहीं पाते हे,

ये विशाल ब्रम्हांड  में एक छोटे से ग्रह पे जन्मा ये तुच्छ सा इंसान ,
कभी कभी खुदको तुजसे भी बढ़कर मान लेता हे,
बड़ी देर हो जाती हे जिंदगी में जब वो ,
खुद के वजूद की वजह जान पाता हे,

कुछ ज़रा सा पाने की चाह में आज,
इंसान कितना बेबश और खुदगर्ज हो गया हे,
की उसके पास, उसके साथ हे जो, उसे ही नहीं  जान पाता हे,
जैसे समझदारी की  पोटली पीछे छोड़,
किसी अँधेरे घने जंगल मो खो गया हे,

अगर युही लिखता रहा तो हजारो किताबे भर जायेगी,
लिखने के लिए तेरी ही दी हुवी ये ज़िन्दगी कम  पड़ जायेगी,
बस यही एहसास काफी हे मेरे जीने के लिए,
की हर इंसान में तुजसे मुलाकात हो जायेगी,
गर कुछ इस कदर तुजसे मोहब्बत हो जायेगी.

– चिराग गडारा.